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जिन्दगी एक डायरी

रिश्ते: मीठे या बोझ

जहाँ हर कोई होली की तैयारियों में लगा था.. वही रागिनी बेचारी रह रह कर यही सोच रही थी " कैसे इस बार पापा के ऊपर बेवजह का बोझ डालने से बच जाए...? " 

अभी दो महीने पहले ही संक्रांति पर इतना कुछ दे कर गए और अब ये होली ! ऐसा लग रहा था जैसे ये सारे त्यौहार लड़कीं वालों के लिए बोझ और लड़के वालों के लिये जरूरत से ज्यादा मनाने के लिए ही बने है । शादी को 5 साल होने को आये पर आज भी उसके घर से हर त्यौहार पर इतना आना उसके लिए कहीं न कहीं चिंता का सबब था , ऊपर से अभी निशि को शादी भी आने वाली है भले ही छह महीने बचे हो पर शादी की काफी तैयारियां तो अभी से ही शुरू हो ही गयी है...मैरेज हॉल बुक कराने के लिए एक लाख रुपये पापा पहले ही एडवांस में दे चुके , अभी ज्वैलरी में भी छोटे से छोटा नेकलेस भी 30 - 40 ग्राम से कम में नही बनेगा...यानी उसका कम से कम एक लाख तो कहीं नही गया ।

 फिर लड़के की चेन , अंगूठी , उसकी मम्मी और उसके पापा के लिए भी एक एक अंगूठी ! उफ्फ !! ज्वैलरी 2 लाख में निपट जाए तब है... अभी रागिनी इसी उधेड़ बुन में थी कि बाहर से सासु माँ की आवाज़ आयी... "बहू ! जरा डायरी , पेन तो लेकर आ ! " 

 "क्या लिखना है... माँजी ! " अंदर से ही रागिनी ने पूछा , " तू तो जानती है हर साल की तरह इस साल भी राधेश्याम भाई होली का शगुन लेकर आएंगे... न , तो उन्हें ही वापसी में देने का सामान लिख दे , अब साल में एक ही बार तो मेरा मौका पड़ता है देने का " और माँ जी ने अच्छी खासी लम्बी चौड़ी लिस्ट तैयार करवा दी । शाम को राकेश ऑफिस से आये तो सब खाना ख़ाकर बाहर बैठे ही थे कि माँजी ने राकेश से पांच हजार रुपये की फरमाइश कर दी , पूछने पर बताया कि परसों तेरे मामा जी आ रहे है उन्हें ही शगुन के वापसी का सामान देना है , राकेश ने न चाहते हुए भी माँजी को पैसे पकड़ा दिए ।

 अब बारी रागिनी की थी ,
पिछले पांच साल से उसके घर से साल भर के हर त्यौहार पर घर के सब लोगों के कपड़े , मिठाई और तरह तरह का सामान आता है , शादी के पहले एक साल तक ये कहकर सब आया कि शुरू के एक साल सब त्यौहार होने चाहिए ! दूसरे साल भगवान की दया से अंशु उसकी गोद मे आ गया तो एक साल उसके होने की खुशी के सारे त्यौहार !  दो साल बाद रुनझुन के होने के बाद से सब वही क्रम चल रहा है , पर वापसी में उन्हें रागिनी देती क्या है..! 

एक मिठाई का डिब्बा और भाई को एक टीके के साथ लिफाफा ! जिसमे अब उसने 100 रुपये से बढ़ा कर केवल 250 रुपये कर दिए , ये सब त्यौहार खुशी खुशी मनाए जाने चाहिए... न कि चिंता में , मुझे कुछ तो करना होगा पर क्या वाकई मैं इतनी मजबूर हूँ...नही नही थी , पर अब नही "

 रागिनी उठी और बाहर हॉल में जाकर राकेश से बोली  " राकेश मुझे भी कल माँजी के साथ खरीदारी करनी है उसके लिये कुछ पैसे चाहिए " उसके शब्द सुनकर सब हक्के बक्के से रह गए.... छूटते ही माँजी ने पूछा... " बहू ! तू कब से अपने घरवालों के लिये खरीदारी करने लगी...?  तू तो हमेशा से एक मिठाई का डिब्बा देती ही है.. न , फिर आज आज क्या हुआ...तुझे ? 

  " माफ कीजियेगा.. माँजी !! वो डिब्बा आप देती है...मैं नही , पर आज मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि घर जाकर जब मम्मी वापसी के बैग को खोलकर देखती होंगी तो उन्हें क्या लगता होगा...? उनके खुद के लिए नही पर शगुन के लिए ही सही , क्या निशान्त नही चाहता होगा...! कि जिस बहन के घर वालो के लिए वो इतने महंगे और खूबसूरत कपड़े लेकर गया है।

वो भी उसके लिए कभी कम से कम एक शर्ट ही दे , कभी कभी निशि का भी तो मन होता होगा...न , हर बार वो इतने मन से मेरे लिए सबसे बढ़िया सूट / साड़ी लाती है.. कम से कम एक सूट उसकी दीदी भी उसके लिए दे ! " माँजी को कोई जवाब ही नही सुझा..! पर राकेश रागिनी की उलझन समझ गया था और उसने माँजी से पैसे वापस लिए और उन्हें दो मिठाई के डिब्बे और पांच पांच सौ के दो नोट लाकर दे दिए , साथ ही माँ और रागिनी दोनो को सख्त हिदायत दी कि दोनो ही अपने घर वालों पर लेन देन का कोई बोझ नही डालेंगी और आगे बढ़कर खुद ही उन्हें मना करेंगी । 

इसके लिए उसने शुरुआत माँ से ही की , और उन्हें मामा जी का नम्बर मिला कर दिया पर माँ तो समझ ही नही पा रही थी कि बात कैसे करें उसने माँ से फोन लिया...  " प्रणाम !! मामा जी , कैसे है आप...? कल आप आ रहे है... न , माँ आपका बेसब्री से इंतज़ार कर रही है... नही..! पर क्यों...? कोई बात नही , आपकी तबियत सही नही है तो कल मैं माँ को ट्रेन में बैठा दूंगा वो आपके पास शाम तक पहुंच जाएगी आप सुधीर भैया को बोल दीजियेगा कि माँ को स्टेशन से ले लेंगे , और हां एक बात और आप कल मां को मिठाई के अलावा और कुछ न दे , अब से हम सिर्फ मीठे रिश्ते निभायँगे.. बोझिल नही !! " कहकर राकेश ने फोन रख दिया । 

माँ जी आश्चर्य से बेटे का चेहरा देख रही थी राकेश ने कहा  " माँ ! शायद आपने महसूस न किया हो मामा जी आवाज़ से बिल्कुल भी बीमार नही लग रहे थे , शायद वो भी इस बेवजह के खर्च से परेशान होते है...अब आप खुद ही सोचो उनका खुद का गुजारा ही पेंशन से चलता है , अब उसमे से आधी से ज्यादा तो इन त्योहारों के लेन देन में निकल जाती है कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता होगा...उन्हें ! 

माँजी , आज अपने बेटे और बहू की समझदारी पर गर्व कर रही थी जिन्होंने उन्हें आज उम्र में छोटा होते हुए भी एक बड़ी सीख दे दी । उधर रागिनी भी अपने घर फोन कर उन्हें लेन देन के बोझ से मुक्त कर चुकी थी।