बेटा मुझे भी हाथ खर्च की जरूरत होती है....!!

शाम का समय था। घड़ी में सात बज चुके थे। ममता जी रोज शाम 5:00 बजे तक अपना खाना खा पी कर इस समय अपने रामायण पाठ कर वाॅक पर निकल जाती थी। पर पता नहीं क्यों आज अपने कमरे के बाहर अभी तक नहीं आई।
उनकी दस वर्षीय पोती सानवी दो-तीन बार कमरे में आकर देख भी चुकी थी। 
दादी के रामायण पाठ तो आज कुछ लंबे ही जा रहे थे। यही तो वक्त होता था कि जब वो अपनी दादी के साथ बाहर घूमने जाती थी। नहीं तो स्कूल और कोचिंग में ही पूरा दिन निकल जाता था। यही तो सुकून के पल होते थे जिसमें वो अपनी मर्जी से खुलकर सांस लेती थी और दादी से नये किस्से कहानियां सुनती थी।
थोड़ी देर बाद सानवी ने कमरे में वापस जाकर देखा तो दादी तो आज इतनी जल्दी सो भी चुकी थी। एक बार तो सोचा कि दादी को जाकर उठाएं। पर ऐसे किसी को नींद से जगाना अच्छा नहीं होता। सोचकर दरवाजा धीरे से बंद कर बाहर चली आई।
हाॅल में आकर टीवी चालू कर बैठ गई। इतने में उसकी मम्मी वंशिका अपने कमरे से निकल कर आई और बोली,
" अरे सानवी बेटा तुम यहां टीवी देख रही हो। आज घूमने नहीं गई"
" नहीं मम्मा, दादी आज जल्दी सो गई"
सानवी ने उदास होते हुए कहा।
" आज मम्मी जी जल्दी सो गई। क्या बात होई होगी? बेटा उनकी तबीयत तो ठीक है। उन्होंने कुछ कहा?"
" नहीं मम्मी, मैं जब उनके कमरे में गई थी, तब दादी सो चुकी थी"
" अच्छा! चलो ठीक है। तुम टीवी देखो"
कहकर वंशिका अपने कमरे में आ गई। कुछ देर बाद उसका पति तनुज भी घर आ गया। सानवी को टीवी देखते हुए देखकर बोला,
" अरे सानवी बेटा घूमने नहीं गई आज। टीवी देख रही है"
" हां, मम्मी जी जल्दी सो गई। तो सानवी टीवी देख रही है। चलो सानवी बेटा, जाओ जाकर अपने कमरे में सो जाओ। सुबह जल्दी स्कूल भी जाना है"
वंशिका ने सानवी को उसके कमरे में भेज दिया।
" आज मम्मी जल्दी सो गई। तबीयत तो ठीक है ना। या कुछ हुआ था आज"
तनुज ने पूछा।
" पता नहीं, खाना तो ठीक से ही खाया था। पर वो सो चुकी थी इसलिए मैंने पूछा नहीं। और आज दिन में मौसी जी मिलने आई थी। सब कुछ नॉर्मल ही था। उन्होंने भी ऐसा कुछ नहीं कहा। हां, मैं कुछ देर के लिए सानवी को लेने बाहर गई थी। जब लौटकर आई तो मौसी जी जा चुकी थी। उस समय कुछ हुआ हो तो पता नहीं"
" ठीक है, उन्हें सोने दो। डिस्टर्ब मत करना। कल सुबह बात करते हैं। फिलहाल मेरे लिए खाना लगा दो। बहुत जोर से भूख लग रही है"
तनुज ने कहा तो वंशिका रसोई में खाना लेने चली गई। तनुज हाथ मुंह धो कर खाना खाने बैठ गया।
रोज की तरह तनुज सुबह उठा तो देखा ममता जी पूजा कर रही थी। तनुज अपनी चाय पी कर कुछ देर न्यूज़ पेपर पढ़ने बैठ गया। कुछ देर बाद नहा धोकर वो ऑफिस के लिए तैयार हुआ और नाश्ता करने बाहर हाॅल में आया तो ममता जी भी वहीं बैठकर नाश्ता कर रही थी। तनुज उनके पास बैठते हुए बोला,
" क्या बात है मम्मी? तबीयत ठीक नहीं है क्या आपकी?"
तनुज के सवाल से ममता जी एकदम से उसकी तरफ देखने लगी और फिर बोली,
" नहीं तो, ठीक है मेरी तबीयत तो। मुझे क्या हुआ है"
" फिर आप कल रात को इतनी जल्दी क्यों सो गई थी? ना आप घूमने गई, ना आपने मुझसे बात की। कुछ तो बात जरूर है"
"नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है"
ममता जी बात को टालते हुए बोली।
"मम्मी बताओ, ना क्या बात है। इतना झिझक क्यों रहे हो, वो भी मुझसे। कुछ तो बात जरूर है। वरना आप मुझसे बात किए बगैर सो गई। ऐसा हो ही नहीं सकता"
तनुज ममता जी के हाथ पर हाथ रखते हुए बोला। उसकी बात सुनकर ममता जी बिल्कुल चुप हो गई। यह देखकर तनुज दोबारा बोला,
" कल मौसी जी आई थी ना। कोई ऐसी वैसी बात हुई है क्या, जो आप मुझे बात नहीं सकते। आप नहीं बताओगी तो मौसी जी को फोन करके पूछना पड़ेगा"
मौसी जी से पूछने की बात सुनकर मनोरमा जी बोली,
" जब उसे कुछ पता ही नहीं है तो वो क्या बताएगी"
" हां, तो आप बताओ क्या बात है। आपको पता है ना मैं बचपन से जिद्दी हूं। आपसे बात बुलवाकर ही छोडूंगा"
तनुज से कहते ही ममता जी बोली,
" हां जानती हूं बाबा कि तू बचपन से जिद्दी है। जब तक मुझसे अपनी बात नहीं बुलवा लेगा, मुझे छोड़ेगा नहीं। तू तो मेरे चेहरे के हाव-भाव कोई पढ़ लेता है। बस इस बार दिल की बात को नहीं पढ़ पाया"
कहते-कहते ममता जी उदास हो गई। ये देखकर तनुज हैरान हो गया और उनके पैरों के पास बैठते हुए बोला,
" मम्मी कभी-कभी है ना बच्चे भी नहीं समझ पाते हैं। कुछ बातें बोल देनी चाहिए। इसका इंतजार नहीं करना चाहिए कि कोई हमारे दिल की बात को आगे से पहचानेगा। तो अब बताओ क्या बात है"
तनुज की बात सुनकर ममता जी कुछ देर खामोश हो गई फिर कुछ सोच कर बोली,
" बेटा मुझे भी हाथ खर्चे की जरूरत होती है"
ममता जी की बात सुनकर तनुज हैरान रह गया और फिर बोला,
" मम्मी सब कुछ आपका ही तो है। मैंने कभी नहीं टोका आपको किसी चीज के लिए। आपने जो चाहा मैंने ला कर दिया। क्या वंशिका ने?"
"अरे नहीं नहीं मेरी तो बहू भी बहुत अच्छी है कभी किसी चीज के लिए इंकार नहीं करती पर..."
" पर क्या मम्मी? खुलकर तो बोलिए"
"देख बेटा ना तूने कभी मुझे मना किया, ना ही बहू ने। जब भी कोई रिश्तेदार आता है या कही शगुन देना पड़ता, मैं जितना बोलती हूं तुम दोनों ही चुपचाप निकाल कर दे देते हो। मुझसे सवाल भी नहीं करते हो। लेकिन कल एहसास हुआ मुझे कि मेरे पास भी हाथ खर्च होना चाहिए। जब मौसी आई और बहू कुछ देर के लिए सानवी को लेने स्कूल चली गई। पीछे से मौसी को अचानक निकलना पड़ा तो कल मेरे हाथ बिल्कुल खाली थे। कल पहली बार मौसी को जाते समय मैंने कुछ नहीं दिया। इसीलिए कह रही हूं कि मुझे भी हाथ खर्चे की जरूरत होती है। कभी-कभी सानवी के साथ घूमने जाती हूं तो बच्ची की जिद के बावजूद उसे दिलाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं होते। बार-बार तुम लोगों से मांगने से अच्छा है कि अगर मेरे हाथ में कुछ पैसे हो तो मैं अपने पास ही निकाल कर दे दूं"
ममता जी की बात सुनकर तनुज बिल्कुल खामोश हो गया। वहीं वंशिका भी दरवाजे पर खड़ी उनकी बातें सुन रही थी। तब वंशिका बोली,
" मम्मी जी सही कह रही है। हाथ खर्च की तो हर किसी को जरूरत होती है। हमने तो इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। हर बार मम्मी जी के साथ या तो मैं होती हूं या आप होते हो। मम्मी जी अकेले कभी बाहर गई नहीं। घर में भी हम लोगों में से कोई ना कोई मौजूद होता है। इसलिए इस पर कभी हमारा ध्यान गया ही नहीं"
" माफ करना मम्मी, इस तरफ तो हमारा ध्यान ही नहीं गया। हम तो भूल ही गए थे कि आपको भी हाथ खर्चे की जरूरत होती है। अब से हम ये गलती नहीं करेंगे"
आखिर तनुज और वंशिका ने इसके लिए ममता जी से माफी मांगी। और अब हर महीने तनुज ममता जी के हाथ में अपने आप ही हाथ खर्चे के पैसे रख देता था।