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जिन्दगी एक डायरी

दिखावा

अरे राजू भैया ऐसे किन ख्यालों में खोए बैठे हुए हो बेटी की शादी सिर पर है।

ऐसे में तो एक पिता खुशी में झूमते हुए दिखाई देता है और तुम हो की पार्क की इस बेंच पर अकेले बैठे हुए गहरी चिंता में डूबे हुए हो।

क्या हुआ कोई परेशानी है दहेज वगैरह की तो नहीं

अरे नहीं बिरजू बात वो नहीं है लड़के वाले अच्छे हैं दहेज प्रथा के विरोधी मगर सच कहूं आज बाबूजी की कहीं हुई बातें बहुत याद आ रही हैं।

जिनपर में कभी हंसा करता था मगर आज एहसास होता है कितना सच कहा करते थे।

राजूभाई बड़े बुजुर्गो के बाल यूं ही सफेद नहीं होते उनके अनुभवों से ये सब ज्ञान होता है।

 जिनसे वो अपने बच्चों को बचाने के लिए हमें आगाह करते रहते हैं वैसे क्या बात याद आ रही थी चाचाजी की।

बिरजू बाबूजी अक्सर कहते थे बेटी की शादी में और मकान बनाने में लगाया गया अनुमान अक्सर गलत साबित होता है।

सोचो दो तीन लाख का बजट पांच पार कर जाता है मैंने भी ज्योति की शादी के लिए अपना बजट तय किया हुआ था।

मगर .... मेरे अनुमान से लगाए गये सब खर्चे अचानक से बढ़ गये मेरे खर्चों का पूर्वानुमान गलत निकला यार लडके वालो की फरमाइशें तो होती ही है ये तो मुझे पता है मगर मेरे खुद के बच्चे ।

उन्हें शादी किसी बारात घर में नहीं बल्कि बड़े से होटल रेस्टोरेंट में चाहिए

शगुन और शादी दो प्रोग्राम है दोनों के लिए महंगी डिज़ाइनर ड्रेस चाहिए

दोनों प्रोग्राम के लिए ब्यूटिशियन भी ख़ासा पैसा लेने वाली बुक करी है।

जब मैं अपनी हैसियत की बात करता हूं तो सबके सब एक साथ बोल उठते हैं ...शादी कौन सी बार बार होती है और फिर फलां की शादी का एग्जाम्पल देना शुरू कर देते हैं मुंह फुलाकर कहते हैं आपको जैसा ठीक लगे करो
हम बस शादी में शामिल हो जायेंगे।

अरे यार उन्हें कैसे समझाऊं मैं.....

पैसे वाले तो अपनी शान दिखाने के लिए चकाचौंध से भरी महंगी शादियां करते है।

और उनकी देखा देखी मे मध्यम वर्ग, विशेष रूप से युवा दिखावे की उस अंधी दौड़ में शामिल हो जाते हैं जो उनके लिए है ही नहीं।

ओह ....सच कहा राजू भाई आजकल की यही परिस्थितियां कमोबेश हर परिवार में हो रही है एक पिता को पता होता है कैसे वो पाई पाई एकत्रित करके बेटी की शादी के लिए अपनी अनेकों ख्वाहिशों को अनदेखा करता है।

मगर आजकल के युवा बच्चों को बस दिखावा चाहिए होता है उसने वहां ऐसा किया तो में भी अपनी शादी में वहीं करुंगा वैसा ही डिजाइनर ड्रेस पहनूंगा।

स्टाटर में चाइनीज फूड चाहिए कुछ गेम्स होने चाहिए 
और तो और ड्रेस कोड तक ... खैर अब क्या सोचा है आपने।
सोचना क्या है बिरजू ....अपनी भविष्यनिधि संजोकर रखीं थीं।

 की बुढ़ापे में .... वही रकम निकासी का फॉर्म भरने जा रहा हूं कहते हुए राजूभाई उठकर चल दिए वहीं बिरजू पार्क की बेंच पर बैठे हुए बुदबुदाने लगा।

सच है भैया बाहर वालों से लड़ना आसान है मगर अपनों से....?

अपनों से नही...!!