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जिन्दगी एक डायरी

एक गरीब मैं कौन हूं (Ek Gareeb Main Koun Hu)

माँ.. माँ... माँ...

अरी क्या हुआ ?क्यों गला फाड़ रही है?

माँ मैं कौन हूँ? बताओ न माँ कौन हूँ मैं ?

अरी हुआ क्या?

माँ तुम झूंठ बोलती हो,तुम तो मुझे परी कहती हो और कभी कभी तो तुम मुझे अपनी रानी भी कहती हो मगर माँ आज मैं जब मेमसाब के घर में पोंछा लगा रही थी तब मैंने टीवी में देखा था कि परी तो बहुत अमीर होती है, उसके पास जादू की छड़ी भी होती है और माँ रानी तो बहुत सुंंदर सुंदर कपड़ें पहनती है और माँ मेरी फ्राक तो फटी हुई है 
तुमनें झूंठ क्यों बोला, क्यों बोला ? ऊं हूं...

अरे बिटिया इतना काहे रो रही है, चुप हो जा रानी ।

फिर से झूंठ, मैं नहीं हूँ कोई रानी वानी और मुझे पता है कि मैं कौन हूँ ,मुझे हरिया काका ने बताया है बस वो ही सच बोलते हैं।

क्या बताया तुझे उस हरिया कपटी ने,हां बोल क्या बताया?

मैं जब भी मेमसाब के घर से काम करके लौटती हूँ न तो हरिया काका की दुकान पर हरी लाल टाफियां देखकर खड़ी हो जाती हूँ मगर मेरे पास कभी भी टाफी लेने के पैसे नहीं होते हैं ऊं हूं...

फिर से रोने लगी,बता फिर।

फिर हरिया काका बोलते हैं ऐ भिखमंगी जब देखो इधर उधर फुदकती रहती है तेरा ये रोज का नाटक है चल भाग यहाँ से भिखमंगी कहीं की,फुट्ट ।
माँ क्या मैं सचमुच भिखमंगी हूँ ?

रोती हुई बिटिया को तो माँ ने अपने ममतामयी आंचल में छुपा लिया मगर एक गरीब के हालातों से लड़ती हुई उसकी पहचान जो इस समाज द्वारा उसपर जबरन थोप दी जाती है, उसे वो अभागी माँ कहाँ और कैसे छुपा पायेगी ???